वो मेरी तमाम वाफ़ाओं का सिला कुछ इस तरह से देता है
बात करके कुछ ऐसी मुझे मेरी नज़रों से गिरा देता है |
ख्याल रखता है वो मेरा कुछ इस तरह से
के ज़ुबान के नश्तर से मुझे मार देता है |
उसकी बात फाँस बन कर अटक जाती है मेरे दिल में
वो कभी कभी बिन मौत मुझे मार देता है |
बनती है फिर मेरी ज़ात ही शिकवे शिकायतों का मेहवार
यूँ लगता है मुझे वो मेरे होने की सज़ा देता है |
ना जाने कैसे सहता है वो मेरे वजूद को
मुझे अपने उपर बोझ क़रार देता |
भूल जाता हूँ मैं बहुत जल्द इन ज़्यादतियों को
वो जब एक बार मुझे देख कर मुस्कुरा देता है |
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