एक कार्टून पे उलझे सांसद

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May 26, 2012

एक कार्टून पे उलझे सांसद


आजकल हमारे सांसद लामबंद है एक ऐसे कार्टून को लेकर जो ६३साल पहले बना था और जिसे कार्टून के पितामह कहे जाने वाले श्री केशव शंकर पिल्ले ने बनाया था वो केशव शंकर जिन्हे भारत सरकार न जाने कितने सम्मानो से सम्मानित कर चुकी है| आज उन्ही के एक कार्टून को किताबो से हटवाने के लिए सारे सांसद पिछे पड़े है  और तर्क ये दे रहे है की इसमे दलित भावनाओ को चोट पह्ोची है और बच्चो मे नेताओ के प्रति ग़लत संदेश जा रहा है
मै भी उस कार्टून की तलाश मे कई दिनो से पत्र पत्रिकाओ के पन्ने तलाश रहा था आख़िरकार मिल गया वो कार्टून जिसमे दिखाने की कोशिश की गयी है की कैसे डा.अंबेडकर धीरे धीरे खिसक रहे संबिधान रूपी घोंघे पर बैठे चाबुक लगाकर उसे तेज़ चलाने का प्रयास कर रहे है और नेहरू जी भी पिछे खड़े हो यही कर रहे है| ध्यान से देखने पर पता चलता है की नेहरू जी चाबुक का वॉर अंबेडकर पर नही बल्कि घोंघे पर कर रहे है उनकी निगाहे नीचे की ओर घोंघे पर है|

मैने इसे कई बार देखा पर मुझे कही से भी ये नही लगा की इस कार्टून मे किसी भी तरह किसीका अपमान किया गया हो | ये तो उस व्यवस्था पर व्यंग करता है जब संबिधान बनाने मे हो रहे देरी से सब परेशान थे |
मैने ये कार्टून अपने पड़ोस के ८साल के बच्चे को दिखाकर मतलब पुछ लिया बच्चे ने कहा -"ये दोनो आदमी कछुये को हंटर मारके कह रहे है की तेज़ चलो"|
अब यहाँ सोचने को मजबूर करने वाली बात ये है की क्या हमारे सांसदो की बौद्धिक क्षमता एक ८ साल के बच्चे से कम है, या ये आदती हो गये है सामान्य से अविवादित मुद्दे को विवादित करके संसद का कीमती समय नष्ट करने के?
जहाँ देश की जनता महगाई, भ्रष्टाचार जैसी चीज़ो से त्रस्त है, जहाँ युवा बेरोज़गार घूम रहे है, देश की आर्थिक हालत मंदी की ओर इशारा कर रही है और पूरे देश की निगाहे संसद की ओर कुछ भले की उम्मीद से टकटकी लगाए हुई हो ऐसे मौके पे हमारे माननीय मंत्री, सांसद एक सामान्य से कार्टून के पिछे आपस मे लड़ के खुद का कार्टून बनवा रहे है, और ये तर्क दे रहे है की इस कार्टून से लोकतंत्र की छवि खराब हो रही है?
जब यही सांसद लोकसभा, विधानसभा मे कुर्सिया, चप्पल, माइक्रोफ़ोन फेकते नज़र आते है, अश्लील वीडीओ देखते पकड़े जाते है तब लोकतंत्र की छवि का ख्याल नही आता?
क्या भाजपा, क्या कांग्रेस, क्या सपा, क्या बसपा सभी एक स्वर मे इसका विरोध कर रहे और कहते है की लोकतंत्र के मुद्दे पर हम सभी एक है|
ये एकता तब क्यू नही दिखती जब पूरा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत क़ानून बनाने की माँग कर रहा है, या सुरसा के मुह की तरह बढ़ती जा रही महँगाई को रोकने की गुहार करता है?
चलिए अगर इस कार्टून को हटा भी दिया जाय तो क्या हमारे माननीय सांसद लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने का भरोसा जनता को दिलाएँगे? क्या सिर्फ़ एक कार्टून के हटने से देश के लोकतंत्र की बिगड़ी हुई छवि(जैसा की कहा जा रहा है) सुधर जाएगी?
आज इन्हे कार्टूनो से परेशानी है तो उन्हे हटा रहे है कल फसेबुक, ट्वियर जैसे सोसल साइट पर प्रतिबंध लगाएंगे कहेंगे की इसमे जनता नेताओ के खिलाफ अपनी भाड़ास निकलती है जिससे लोकतंत्र की छवि खराब हो रही है|
तो क्या हम ये माने की हमारी संसद एक तानाशाही प्रवृति की ओर बढ़ रही है?
या ये माने की अब हमारे यहाँ ग़रीबी, महगाई, बेरोज़गारी जैसे मुद्दो का विशेष महत्व नही रह गया इसलिए सामान्य से मुद्दे को असामान्य बना उसपर राजनीति की जा रही है?
या फिर ये की ये सब गहरी समस्यावो से जनता का ध्यान बटाने का तरीका है?

7 comments:

  1. सर्वप्रथम आपको इस मुद्दे पर अपनी राय रखने के लिए धन्यवाद.........
    अब मैं इस देश के सांसदो से ये जानना चाहता हूँ कि उन्हे सांसद बनाकर संसद मे भेजता कौन है? यदि वही जनता जिसने उन्हे चुनकर संसद मे बिठाया है , उनके ग़लत और नाजायज़ कार्यो पर अपनी भाड़ास फेसबुक , ट्विटर जैसी सोशल साईटो के माध्यम से निकालती है तो क्या ये उनका अपमान है,इससे तो उन्हे अपने कार्यो का अवलोकन करना चाहिए किंतु भारतवर्ष के ये भ्रष्ट नेता अपने कार्यो मे नही अपितु बेकार के कार्यो मे अपना और देश की संसद का बहुमूल्य समय बर्बाद कर रहे है,,,,,इसलिए हमे जागरूक बनना होगा ,देश की जनता को जागरूक बनना होगा| यदि ऐसा नही हुआ तो हमारे देश का भविष्य पूर्णतया अंधकारमय दिखाए दे रहा है|

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    1. आपसे हम पूर्णतः सहमत है आशीष जी|किंतु
      अंधकारमय देश का भविष्य नही भ्रष्ट नेताओ का होना चाहिए

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  2. अच्छा विमर्श। अगली बार वोट देते समय नेता में ईमानदारी के साथ-साथ परिपक्वता और निष्पक्षता भी देखी जानी चाहिये। सेंस ऑफ़ ह्यूमर के पूर्णाभाव वाले मिट्टी के माधो और व्यंग्य से चिढने वाले असहिष्णुओं को उनकी औकात से ऊँची जगह बिठाने से बचने की ज़रूरत है।

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    1. धन्यवाद अनुराग जी|
      आपके बारे मे जानकर हर्ष हुआ की आप
      अमेरिका मे रहकर हिन्दी को सम्मान दे रहे है|

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  3. काट्रॅन कार्टून न हुआ चुटकुला हो गया कि‍ वो जब समझ आया तब हँस लि‍ए और जब ये समझ आया तो बाल नोच लि‍ए

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