मै घर ऑफिस के लिए
निकला ही था तभी बारिश शुरू हो गयी और बस स्टॉप तक पहुचते- पहुचते पूरी तरह भीग गया फिर वापस घर आया कपडे बदले,
बदन सुखाया और चल दिया, बस में बैठा अभी थोड़ी ही दूर पंहुचा की देखा सड़क ओलम्पिक में गोल्ड मेडल की
तरह सुखी है बारिश की एक बूंद नहीं| मै सोचने लगा की अब मै ऑफिस में देरी का कारण क्या बताऊंगा??
मै कोई नेता या मंत्री तो हु नहीं कि बेवजह झूठ बोलता रहू और लोग यकीन कर ले और सच बोलूँगा तो कोई मानेगा नहीं, मनमोहन सिंह जी वाली मुद्रा में बैठा बिचारो में खोया ही था कि मेरी नज़र देवर्षि नारद मुनि पर पड़ी जो चुपचाप
कही चले जा रहे थे मै उनके पास गया और पूछा - "महामुनि क्या आप
सचमुच नारद मुनि है या उनके भेष में कोई भिखारी??"
देवर्षि ने पूरी विनम्रता से उत्तर दिया -"नहीं वत्स मै नारद ही हु|" मेरे द्वारा उन्हें भिखारी
कहे जाने पर भी वो विनम्र बने रहे जिससे मुझे विश्वास हो गया की ये देवर्षि ही है|
लेकिन मन में शंका अभी भी थी तो पूछ लिया कि "मुनिवर जैसा कि मैंने अबतक
देखा, सुना, पढ़ा है आप तो हमेशा नारायण - नारायण का जाप करते रहते है किन्तु
प्रत्यक्ष तो ऐसा नहीं दिख रहा?" देवर्षि अन्ना जैसे तेवर में आ गये बोले
"वत्स जबसे पृथ्वी के नारायण(दत्त) का D.N.A टेस्ट हुआ तब से जब भी यहाँ आता हु शांत ही रहता हु पता नहीं कौन क्या समझ ले" ऐसा कहते हुए देवर्षि कही खो से गये, वो ध्यान में लीन होते इससे पहले मैंने अपना वो सवाल उनकी तरफ उछाल दिया जिसके लिए उनके पास गया था
"वत्स जबसे पृथ्वी के नारायण(दत्त) का D.N.A टेस्ट हुआ तब से जब भी यहाँ आता हु शांत ही रहता हु पता नहीं कौन क्या समझ ले" ऐसा कहते हुए देवर्षि कही खो से गये, वो ध्यान में लीन होते इससे पहले मैंने अपना वो सवाल उनकी तरफ उछाल दिया जिसके लिए उनके पास गया था
"हे मुनि श्रेष्ठ कृपया
ये बताये इसबार ये बारिश हम मनुष्यों के साथ भेदभाव क्यों कर रही है?"
इसबार देवर्षि तपाक से बोले- "जितना पेमेंट मिला होगा इन्द्र को उतनी ही बारिश करेंगे न?"
उनके इस बेतुके जवाब से मुझे उनमे माननीय दिग्विजय
जी कि छवि दिखने लगी जिन्हें खुद नहीं पता होता कि वो क्या बोल गये!! अभी वो मेरी तरफ देख ही
रहे थे कि मै आदत से मजबूर बोल पड़ा- "किन्तु मुनिवर हमने तो सुना है कि स्वर्ग में कोई
भेदभाव नहीं होता वहाँ सबको एक नज़र से देखा जाता है?"
देवर्षि को लगा कि वो अपने दिए बयान में फस गये अब वो बेचारे कोई सत्ता पक्ष में
मंत्री तो है नहीं कि कोई उनके दिए गये बयान को संभालने आगे आयेगा कोई इसलिए उन्होंने
खुद ही कमान संभाली और बोले-"सुनने और बोलने कि आजादी तो सबको है लोग कुछ भी
सुन लेते है, सुना तो हमने भी था कि
भारत के प्रधानमंत्री बड़े ईमानदारी इंसान है फिर कैग कि रिपोर्ट आते ही उनपर
उंगली क्यों उठ रही है? सुना तो ये भी था कि
अन्ना कभी राजनिति में नहीं आएंगे किन्तु उन्होंने तो पार्टी बनाने कि घोसडा कर दी, सुना तो ये भी था कि रामदेव बाबा
महाक्रान्ति लाने जा रहे है किन्तु हुआ क्या पूरी उम्र ब्रह्मचारी का व्रत लेने
वाले को अंततः स्त्री वेशभूषा में प्राण बचाने पड़े??” इससे पहले मुनिवर कुछ और
बोले मैंने उन्हें बीच में ही रोक दिया (क्युकी हम खुद चाहे कुछ कहे पर कोई बाहर वाला हमारे देश या
देशवाशियो के बारे में कुछ कहे तो हमारी देश भक्ति जग जाती है) मैंने कहा "मुनिवर हम तो
इन्सान है हमारी कथनी और करनी एक नहीं होती हमारे यहाँ तो भ्रस्टाचार है किन्तु
स्वर्ग में तो शिस्टाचार है?”
मेरी बात पूरी होने से
पहले ही देवर्षि बोल पड़े "स्वर्गवासी भी तो
पृथ्वीवासी ही
होते है?"
"यदि ऐसा है मुनिराज तो
आप भ्रस्टाचारियो को नरक में भेजा करे" मेरे इस जवाब से नारद जी उदास से
हो गये और बोले-"नरक की सीटे तो
पहले ही भर चुकी है वत्स, कुछ एक जो बची भी है वो भी कुछ विशेष वर्ग के लोगो के लिए आरक्षित है इसलिए हमें ऐसे लोगो को भी स्वर्ग भेजना पड़ता है जो वास्तव में नरक के
लायक भी नहीं होते और ऐसा करना हमने तुम लोगो से ही सिखा है|"
ये सुनने के बाद मेरे पास कोई सवाल नही था मै महर्षि के सामने नतमस्तक हो गया
और जब उठा तो कंडक्टर मुझे जगा रहा था ये बताने के लिए की मेरा स्टॉप आ गया अब मुझे उतरना है बस से...
very nice story
ReplyDeletethanks Rajay..
Deleteकभी-कभी सपने भी सीख दे जाते है प्रवीण जी.......सपने वाली कहानी के लिए धन्यवाद......
ReplyDeleteकाश की ये हमेशा सपना ही रहे आशीष जी
Deleteसराहनीय व्यंग है दुबे जी...
ReplyDeleteबहुत अच्छे अंदाज में अपने अपनी बात कही|
धन्यवाद विमल जी|
Deleteव्यंग पूर्ण लेख के लिए आप धन्यवाद् के पात्र है|
ReplyDeleteराजनीती और व्यवस्था पर अच्छा चोट किया है अपने..
----Rajiv MGKVP.
धन्यवाद|
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