इसबार 26 जनवरी संडे को नहीं मंडे को मनायी जायेगी

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January 29, 2014

इसबार 26 जनवरी संडे को नहीं मंडे को मनायी जायेगी

इस बार 26 जनवरी सन्डे(रविवार) को है सभी इस बात से दुखी है कि एक छुट्टी ख़राब हो गयी! ये जब भी सन्डे को पड़ती है ऐसा ही माहोल बन जाता है पर जब भी ये सन्डे पड़ती है मुझे मेरे बचपन कि घटना याद आती है जनवरी 1997, तब मै 5th क्लास में था शायद मेरी गिनती चंद होशियार बच्चो में से होती थी और मै अपनी क्लास का मॉनिटर हुआ करता था यानि जो बात मै बोलू वो सब मानते थे उस साल भी 26 जनवरी रविवार को थी यूँ तो 26 जनवरी और 15 अगस्त का इंतज़ार पुरे साल किया करते थे हम सभी पर इस बार भ्रम का माहोल बन गया क्युकी रविवार का मतलब तो छुट्टी होता है अब ऐसे में 26 जनवरी कब मनायी जायेगी? मिठाई कब मिलेगी? और हमें झंडा लेके कब आना होगा? और सबसे ज्यादा दुःख इस बाद का था कि उस दिन अगर स्कूल आगए तो कृष्णा कैसे देखेंगे?(उस समय टी. वी पर श्री कृष्णा बड़ा पॉपुलर था)|

इसी सवाल का जवाब तलाश करते मेरे क्लास के स्टूडेंट्स मेरे पास आये क्युकी मै मॉनिटर था. हालाँकि जवाब तो मै भी तलाश रहा था पर अब बात बढ़ गयी थी और अगर मै टीचर से पूछता तो मेरी साख कम हो जाती मुझे तो ये दिखाना था कि मै सब जानकारी रखता हु और तुम लोग सही जगह आये हो तो मैंने भी अपनी तर्क शक्ति का इस्तमाल करते हुए कहा- रविवार के दिन तो छुट्टी होती है उस दिन तो परीक्षाएं भी नहीं होती फिर 26 जनुअरी कैसे मनायी जायेगी स्कूल में? वो तो अब दूसरे दिन यानि सोमवार को मनायी जायेगी काफी तर्क वितर्क और चर्चा के बाद ये तय हो गया कि कल यानि रविवार को हम लोग कृष्णा देखेंगे और 26 जनवरी अगले दिन यानि सोमवार को मनाएंगे |


हमारे घर से स्कूल काफी पास था इसलिए स्कूल कि घण्टी और प्रार्थनाये साफ़ सुनायी देती थी, हुआ भी वही पर इस बार वो घण्टीया सिर्फ सुनायी ही नही दे रही थी बल्कि डरा रही थी मुझे, हाथ पैर सुन्न पड़े थे, दिमाग काम करना बंद हो गया था डर से और रही सही कसर न्यूज़ ने पूरी कर दी ये बताकर कि लाल किले का ध्वजारोहण कार्यक्रम का सीधा प्रसारण आने कि वजह से कृष्णा अगले हफ्ते दिखाया जायेगा. अब तो जो हालत हुयी कि उसे शब्दो में नहीं बता सकता उसे तो बस महसूस किया जा सकता है जिसे मैंने किया, जैसे ही ये न्यूज़ पता चली अफरा तफरी मच गयी सभी भागे स्कूल कि तरफ और रास्ते भर जब तक स्कूल नहीं आया मुझे मारते गरियाते रहे सब |

खैर किसी तरह गिरते पड़ते मै स्कूल पहुँच तो गया लेकिन मेरी नज़र स्कूल में हो रहे कार्यक्रम पे कम बाकि स्टूडेंट्स कि नज़रो पे ज्यादा थी जो मुझे ऐसे घूर रहे थे मानो मौके का इंतज़ार कर रहे हो कि "कब बेटा तुम हाथ लगो" और साथ में ये भी डर था कि अगर घर पे पता चला तो क्या होगा मेरा? मै खुद तो नहीं आया और बाकि लोगो को भी रोक दिया जिनमे कुछ ऐसे बच्चे भी थे जो स्कूल के रंगारंग प्रोग्राम में भाग लेने वाले थे|

उन दिनों हम बच्चे थे राजनीती से जान पहचान नहीं थी किसीकी इसलिए किसीने भी मेरे मॉनिटर पद से इस्तीफे कि मांग नहीं कि और नाहीं मेरे खिलाफ कार्यवाही कि बस "तुम्हे देख लेंगे वाले डायलॉग से काम हो गया"


1 comment:

  1. हा हा …… बचपन में स्कूल में जाने या अनजाने में की गई गलतियाँ सदा हमारी यादों में रहती :-) सादर धन्यवाद।।

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